________________
१४८ ]
मेरु मंदर पुराण यह कहते रहो कि इस संबंध में मंत्री का कोई दोष नहीं है । मैं तो वैसे ही पागलपन में मंत्री का नाम ले ले कर वृक्ष पर बैठा बैठा पुकारता था कि मंत्री मुझे रत्नों की पेटी नहीं देता और गली गली में चिल्लाता था सो वास्तव में मैं पागल था और यह भी कहना पड़ेगा कि एक दिगम्बर मुनि के संसर्ग से मेरा पागलपन दूर हो गया। ऐसा करने से कलंक भी नहीं लगेगा और राजा भी इस बात को स्वीकार कर लेगा। इस प्रकार निपुणमति दासी ने भंडारी को समझाया ॥२८॥
निनत्त पिन् शत्तिय कोड नेवुदु नींगु मेंडेन । विनपयन पेरुमै याले कोडुत्तिलन वेंड वंड़ि॥ सिनंकळिट ळव मटन ट्रिरुवुळ्ळ मिरुक्क वेय्यत् । देनक्कोंड मरिय दिल्लै इनिसैव दुरैक्क वेंडिान् ।२८६। मन्नव नदनै केटु वरुपळि विलक्कोनावे । येन्नुनकिंगु वंद पळियोंड, मिल्ल ई डम् ॥ मिन्मरिण सेप्पै ईदौ वनिगनै वेंडि कोळवेन ।
मुन्ने यन् पित्त तीर्तान मुनिव नेंड रक्के वेंड़े ।२६०। अर्थ-उस चतुर दासी ने मंत्री के गले में रहने वाली यज्ञोपवीत तथा मंत्री के नाम वाली मुद्रिका उस भंडारी को दिखाकर कहा कि रत्नों की पेटी मुझे शीघ्र देदो। इस कार्य में विलम्ब मत करो। साथ में यह भी कहा है कि यह भेद किसी को मालूम न हो। उस भंडारी को दासी की बातों पर पूरा पूरा विश्वास हो गया कि मुद्रिका व यज्ञोपवीत मंत्री की ही है । तब वह भंडारी दोनों को ले लेता है और तिजोरी में रखी हुई रत्नों की पेटी उस निपुणमति दासी को दे देता है ॥२८६-२६०॥
मंदिरि नंडि देंड, वरै पुरै माविनूलुं । तन पल रंगित्तिट्ट वाळियुं तंदु सेप्पुक् ॥ कुरण करिणन ३न्न विट्टानोरुवरु मरियावन्न । मेन कैयिर सेत्पत्ता वेंडोरैत कोंडिनिदिन मेंडाळ् ।२६१। मंदित्त नोकत्ता लिम्मन्नेलाम् वरणक्क बल्लाळ । सिदित्तेंड रत्त सेयिर् ट्रेवरु पिळेक् माटार ॥ वंदिकाराकु मूत्तन् वैत सेप्पदन वांगि। तदिट्टाळ मुगत्तै नोका तामर किळेत्ति यन्नाळ ॥२६२।
अर्थ- इस जगत में सभी लोगों को अपने अधीन रखने की सामर्थ्य को रखनेवाली निपुणमति दासी इस सभा में रहने वाले कपटी मन्त्री द्वारा अपने कपट से भद्र मित्र वणिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org