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मेरु मंदर पुराण
अर्थ-जिस प्रकार पूर्णमामी के चद्रमा का प्रकाश सदेव शांति को देता है उसी प्रकार जगत में प्रकाश करने वाले उन दोनों दम्पति के एक पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ। वह पुत्र पूर्णिमा के चंद्रमा के समान शनैः २ वृद्धि का प्राप्त हुआ। वह महान तेजस्वी तथा बडा माशकारी, माता-पिता को अत्यंत संतुष्ट करने वाला था। उस पुत्र का नाम भद्रमित्र रखा गया। तदनन्तर नाम कर्म संस्कार के निमित्त से उन्होंने अनेक याजक जनों को दान देकर उनकी कामनाएं पूर्ण की ।। २३२ ॥ ३३ ॥
कलरनिबं कामरु कनियर । मलेवि निवमु मुत्तेंडु मामरिण । विलइनिबमुं वेंडिनर कीमतुम् ।
तले बमुं तानव नैदिनान् ॥२३४॥ अर्थ-तदनन्तर उस बच्चे को विद्याध्ययन हेतु एक ज्ञानी प्रोहित-ब्राह्मण के पास भेजा और अनेक प्रकार की विद्या व कला, व्याकरण निघंटु, न्याय, प्राप्त-पागम आदि शास्त्रों का अध्ययन कराके ज्ञानी पंडित बनाया। तत्पश्चात् पूर्णतया विद्या सीखकर वह लडका अपने घर पाता है । सयाना होने पर एक योग्य धर्मात्मा की सुशील कन्या के साथ उस पुत्र का विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात् थोड़े दिनों में संसारी भोगों को तथा विषय सुखों का अनुभव करता हुआ वह भद्रमित्र अनेक प्रकार के रत्न मोतो माणक प्रादि के ज्ञान में भलीप्रकार निपुण हो गया; और एक महान् श्रेष्ठी, व्यापारी हो गया। अनुकूल सम्पत्ति ऐश्वर्य । प्रादि इस जीव को प्राप्त होना तथा उत्तम सत्पात्र उच्च कुल आदि मिलना पूर्व जन्म में उपाजित पुण्य के फल से प्राप्त होता है, ऐसा ममझना चाहिये । इसी पुण्यफल से उसको यह संपत्ति और संतति प्राप्त हुई थी ।।२३४॥
पडंकडंदनि तंगिव वलगुलुम् । कुडंग ये यळवळ ळ कोळ गर्नु । बडंसुभंबळ कोंगयु मंगयर ।
नुडंगु नुन्निड युन्नुगर वैदिनान् ॥२३॥ अर्थ-वह भद्रदत्त स्त्रियों के अनुकूल जो भी प्राभूषण जेवर प्रादि चाहिये था यह सभी घर में तिजोरी में भरा हुआ रखता था । अर्थात् रत्नादि प्राभूषणों से घर भरा पूरा था और वे दम्पति संसार सुख को पुण्य के प्रभाव से भोगते थे। लक्ष्मी उनके चरणों में लौटती थी ।।२३।।
वळ सुरु गिडिन मानिधियं पलो। रळंदु कोंडुण कापडि तानेळ ॥ ळलं शैदिप मुळ पोळ, कोंडु पोय । विळंगु मा मरिण तीवदु मेदिनान् ॥२३६॥
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