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मेरु मंदर पुराण
मद्रवरे मरित्तिरंडु मागुवर् ।
अटव रोरुरिमारु मिल्लये ॥२१०॥ अर्थ-इस जन्म में अपने बंधु के रूप में रहने वाले जीव परभव में अपने बंधु रूप में होकर जन्मते हैं । इस जन्म में रहने वाले विरोधी जीव अगले जन्म में विरोधी होकर जन्मते हैं। इस प्रकार प्रत्येक भव में जन्मते आए हैं। अर्थात कई भव भवांतरों में मित्र होकर जन्म लेता है, कई भवों में शत्रु होकर जन्म लेता है । अतः इस प्रकार शत्रु व मित्र इस जन्म में एक भी जीव नहीं है ॥२१०।।
अरसगळे यरुनरग नागुवर् । नरकर्गळे नलवरस लागुवर् ॥ सुररवरे तोळु पुलय रागुवर् ।
नररवरे करु नायु रागुवर् । २११॥ अर्थ-बड़े-बड़े चक्रवर्ती जितने सुखी देखने में आते हैं, वे प्रायः अत्यंत दुख देने वाले नरक में जाते हैं। संसारी जोव इस मनुष्य जन्म में चकवर्ती राजा होकर जन्मते हैं। स्वर्ग के देव भी वहां अपनी-अपनी आयु की समाप्ति पर अथवा व्याधि आदि कष्टों को पाकर भी जन्म लेते हैं और मनुष्य पाप के उदय से कहीं काले कुत्ते भी होकर जन्म लेते हैं ।।२११॥
मंगैयरे वाळ रागुवर् । तंगयरे मरुत्तायु मागुपर् ॥ अंगवरे येडियारु मागुवर् ।
इगिंदु पिरविय दियल्विन वण्णमे ॥२१२॥ अर्थ-कभी स्त्री पुरुष पर्याय में जन्म लेती है, कभी भगिनी माता होती है। माता भमिनी होती है, पत्र माता के रूप में, माता पुत्र के रूप में जन्म लेता है। इसी प्रकार पिता, पुष होता है, पुत्र पिता होता है। ये सब पूर्व भव में किए गये पाप पुण्य का फल समझना चाहिये ।।२१२॥
सुद्रम पगयुमेडि रडु मेल्लया। मदिव वळक्किनान् मदिइन मांदळ् । पैट्रिय पार्कोडा पेट्र दोड्रिले।
सेदम मार्वमुं शेड. निपरे ॥२१३॥ अर्थ-बंधु मित्र शत्रु विरोधी यह कभी भी शाश्वत रूप में नहीं होते। इस विषय । को भली प्रकार से जाने हुए ज्ञानी लोग अनंत सुख को प्राप्त करने के लिये सुख और दुस को समान भाव से सहन करते हैं। जैसा कि:
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