________________
-~~
~~~~~~rnmom
१०८ ]
मेरु मंदर पुराण ऐसा समझकर सभी विद्याधरों को भय उत्पन्न हो ऐसे उन्होंने एकदम दौड़कर विद्युद्दष्ट्र को मोर से लात मारो। लात मारने से वह विद्याधर उसी समय नोचे गिर गया ॥१७॥
मेघ वासत्तिर् ट्रोंड़, मिन्नन दंदत्ताने । भोग पासत्तिन् वंदु पोरदिय सुट्रत्तोंडु॥ नाग पासत्तिर कट्टा नडु कडलिडुबनेन ।
सोग पासत्तिनावा युडदवर तुयर मुद्रार् ॥१८०॥ अर्थ-जैसे बादल की गर्जना होते समय बिजली चमकती है. उसी समय दांतों से युक्त विद्युद्दष्ट्र को तथा उनके बंधुनों को उस धरणेंद्र ने ललकार कहा कि मैं नाग फांस से
बांध करके तुम सभी को समुद्र में फेंक दूंगा। उस समय विद्युद्दष्ट्र के बन्धु लोग जिस प्रकार • समुद्र में जाने वाले जहाजों के टूटने पर जो उनकी दशा होती है वही दशा उन विद्याधरों की हुई। वे दुखी होकर भय से अनेक प्रकार से रुदन करने लगे ।।१८०।।
दरगन ट्रन कोवन् काना दानवर् तलैबरिल्लाम् । मरणमेंड्र दिर् ट्रोन्नामयंगिय मनत्तरागि । शरणमुन् शरणमेन्ना शारं दनर् पलरु सोंदा ।
करणनंनम पुलंगळ् कानार् कंदोळु विरंजि मादों॥१८॥ अर्थ-धरणेंद्र के इस प्रकार क्रोध को देखकर सभी विद्याधर पश्चात्ताप करने बगे कि हम इस नाग फांस से किसी भी हालत में नहीं बच सकते। निश्चय से हमारा मरण ही होगा। इस प्रकार भयभीत होकर विद्युद्दष्ट्र के अनेक विद्याधर व बंधु लोग उस धरणेंद्र के चरणों में गिर गये, और गिर कर हाथ जोड़ कर कहने लगे कि हे धरणेंद्र ! हम सभी विद्याधरों पर प्रापको क्षमा करना चाहिये । आपके विना अब हमारा अन्य कोई शरण नहीं है । इस प्रकार प्रत्यंत रुदन करके वे प्रार्थना करने लगे ।।१८१।।
मिन्नोत्त वत्तिद पाविदान् विदेहत्तिड़ । मुन्न तन् पावत्ताले मुनिवने कोंडुवंदु ॥ कनमोयित्त तिनि तिडोळाय् कतिडेइट्ट. नम्मै ।
तिमत्तान नरक्क बदांनिडन शप्पलोडं ॥१८२॥ अर्थ-हे प्रभु सुनो! अत्यंत तेजमान शरीर से प्रकाशमान यह विद्युद्दष्ट्र महापापी पूर्वजन्म में किये हुए तीव्र पाप कर्म के उदय से विमान में बैठकर इस विदहे क्षेत्र में रहनेवाने संजयंत मुनि को जंगल में तप करते समय पर्वत के शिखर पर बैठ कर तपश्चरण करते समय उन पर होकर आकाश मार्ग से जा रहा था, वह विमान उन मुनि के तप के प्रभाव से रुक गया। विमान रुकने का कारण देखने को जब नीचे उतरा तो देखता है कि संजयंत महामुनि ध्यान में बैठे हुए है । उनको देखते ही विद्युद्दष्ट्र के मन में अत्यंत क्रोध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org