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मेरु मंदर पुराण अर्थ-सिंह आदि भयानक क्रूर पशुओं के रूप को धारण करता हुआ वह दुष्ट गर्जना करने लगा। जिस प्रकार बादलों से मूसलाधार मेध वर्षता है, बिजली चमकती है उसी प्रकार मुनि पर पत्थरों की वर्षा करके उपद्रव करने लगा ॥१५४॥
इनैयन् पलवूशय्य विरैवनु मिवैयलामेन् । विनइन पयगळे वेगुंडिलन विनकनमेले ॥ निनविन निरुत्ति निद्रा नोचनु नीगि पोगि ।
तनदिड कुरुगि यार सलिरोळंबडियर् सोन्नान् ॥१५॥ अर्थ-इस प्रकार उन . ने अत्यंत घोर उपसर्ग अपने पर होते देख उस समय विचार किया कि मेरे ऊपर होने वाले जो उपसर्ग है यह सब पूर्व जन्म के पापों का फल है। यह अशुभ कर्म स्थिति पूरी होने पर अब उदय में आए हैं। ऐसा विचार करके विद्युद्दष्ट्र द्वारा किए गये उपसर्गों पर कोई विचार न करके वह मुनि आत्मध्यान में मग्न हो गये।
मेरे अकेले से यह काम नहीं बनेगा यह विचार कर वह विद्युद्दष्ट्र विद्याधर अपने नगर में गया और नगर के लोगों को डराने के लिये मायाचारी बातें कहकर उन लोगों को अपने साथ चलने को तैयार किया ॥१५५।।
बिलमेन पेरिय वाइन् पिनयलोंड न तिन्नान् । . मलैपळ विळ 'गि नालं वैरोंड निरैदल सेल्लान् । पल पगल परिइन् वाडि पपिडि येत्तपेट्रा ।
ललै पलशैदु नम्मै विळंग वंदरक्क निडान ॥१५६॥ अर्थ-वह दृष्ट विद्याधर उन सभी लोगों से कहने लगा कि हमारे नगर के पास वाले जंगल में एक बडा राक्षस मनुष्याकार पाया है । उसका मुख पर्वत की गुफा के समान बहत बडा भयंकर है। वह राक्षस केवल मुर्दे को खाता है और कोई वस्तु नहीं खाता है। नगर के सभी मुर्दे खाने पर भी उस राक्षस का पेट नहीं भरता है। सूर्य अस्त होने पर वह राक्षस हमारे नगर में आयेगा ओर सब को खाजायेगा। इसमें संदेह नहीं है। ऐसा वह राक्षस हमारे नगर के पास के जंगल में है ।।१५६।।
इंडिरा नम्म एल्लां पिडित्तव नयतिन्न। इंडिरा वारा मुन्न ईडुनामडय कूडि ॥ इडिरा वण्णं शैय्या तोळिदुमे ळिळ, वाळ नाळ ।
एंडिडा वेवक सोन्ना नेरि नरगत्त वीळ वान् ।।१५७॥ अर्थ-वह राक्षस आज रात्रि को नगर में आकर हमको मारकर खाजायेगा इस लिये हम सब लोगों को जंगल में जाकर उसका नाश करना अत्यंत आवश्यक है। यदि उस का नाश नहीं करेंगे तो हम सभी मर जायेंगे। ऐसे तीव्र नरक के बंध होने वाले कृत्य करने
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