________________ गिरिनार-पर्वत के शिखरके मणिरूप, और अष्ट प्रातिहार्यरूप लक्ष्मीवाले, श्री नेमिनाथ भगवान् आप लोगोंकी रक्षा करें।" स्वामिन् ! मामुग्रसेनक्षितिपकुलभवां सानुरागां सुरूपां, बालां त्यक्त्वा कथं वं बहुमनुजरतां मुक्तिनारीभरूपाम् / वृद्धां मुकामकुल्यां करपदरहितामीहसेऽशेषवित् श्राग, इत्युक्तो राजिमत्या यदुकुलतिलकः श्रेयसे सोऽस्तु नेमिः॥५॥ __हे स्वामिनाथ ( भगवन् नेमिनाथ ) उग्रसेन राजाके कुलमें उत्पन्न अनुरागिणी सुन्दर रूपवाली कुमारी ऐसी मुझ (राजिमती) को शीघ्र छोडकर सकल पदार्थके ज्ञाता होते हुए भी, तुम अनेक मनुष्यों में रक्त एवं वृद्ध, मूक (मूंगी) कुल रहित, हाथ, पैर और रूपसे शून्य, जो मुक्ति स्वरूप नारी है, उसकी इच्छा क्योंकर रहे हो? इस प्रकार प्रार्थना के साथ राजिमतीद्वारा कहे गये यदुकुलभूषण (आबाल ब्रह्मचारी) श्री नेमिनाथ भगवान् कल्याण के लिये हों।" कस्तुरीकृष्णकायच्छविरतनुफणारत्नरोचिष्णुभाली, विद्युच्छाली गभीरानघवचनमहागजिविस्फूर्जितश्रीः / वर्षन् तत्त्वाम्बुपूरै विजनहृदयोव्यां लसद्वोधिबीजा कुरं श्रीपार्श्वमेधः प्रकटयतु शिवानयंसस्याय शश्वत् // 6 // _." कस्तूरीके समान (कृष्ण) शरीर की कान्तिवाले नागेन्द्र (धरणेन्द्र) की फणा के रत्नसे शोभायमान भालके कारण मानों बिजली से युक्त अर्थात् मेघ में जैसे बिजली चमकती है उसीतरह फणाका रत्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org