________________ विक्रम चरित्र कहीं भी नहीं मिली / तब उस कन्या के माता-पिता अत्यन्त दुःखित हो गये। वह वर भी लज्जित होकर अपना प्राण त्याग करने के लिये तैयार हुआ। तब मंत्रियों ने सान्त्वन देकर उसको शान्त किया। तब राजा बोलने लगे कि यदि एक मास के भीतर कहीं भी शुभमती नहीं मिली तो हम लोग गिरनार ( रैवताचल) पर अनशन करके अपना प्राण त्याग कर देंगे। इसके बाद सेवक लोग दशों दिशाओं में कन्या की शोध करने के लिये गये। परन्तु अभी तक कन्या का कहीं पता नहीं चला / अब सब रैवताचल की तरफ जायेंगे।' ___ यह सुन कर वह बूढा भारण्ड बोला कि ' हे पुत्र ! तुम ने, निश्चय ही एक बड़ा आश्चर्य देखा है।' इसके बाद उस भारण्ड का दूसरा पुत्र उस के आगे इस प्रकार कहने लगा "मैं ' वामनस्थली ' गया था। वहां के राजा कुम्भ की रूपश्री नामक एक कन्या है। वह भाग्य योग से अन्धी हो गई है / उस राजकन्या ने राजा से काष्ठ भक्षण–चिता में प्रवेशकर जलने की याचना की है / राजा ने उसे आठ दिन तक ठहरने का कहा तथा उसके नेत्र की चिकित्सा करने के लिये कितने ही कुशल वैद्यों को बुलाया / परन्तु उसके नेत्र को अभी तक कुछ भी गुण नहीं हुआ है / अतः अब वह राजा रोज पटह बजवाता है कि जो कोई मनुष्य इस कन्या के नेत्र अच्छे कर देगा उसको राजा मुँह मागी वस्तु देंगे।" उसकी बात सुन कर वह बूढा भारण्ड बोला कि 'वह राजा की कन्या अच्छे औषध के प्रयोग से नेत्र से देखने वाली हो सकती है।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org