Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 498
________________ 402 विक्रम चरित्र किसीसे प्रेम करते हैं / अन्यथा यह संसारमें कोई किसीका नहीं है। एसा सोचकर धीर राजाने शिवसे कहा कि 'हे राजन्! यह नगर तुम लेलो। आजसे मैं आपका सेवक हूँ। आप मेरी सुन्दरी नामकी कन्या को स्वीकार करो और प्रसन्न हो कर मुझको बंधनसे मुक्त कर दो। इस प्रकारकी राजा धीरकी प्रार्थना सुन कर राजा शिवने प्रसन्न होकर उसको बन्धनसे छोड़ दिया। क्यों कि ? "उत्तम व्यक्तियों का क्रोध प्रणाम-नमस्कार पर्यंत ही रहता है। परन्तु नीच व्यक्तियों का क्रोध प्रणाम करने पर शान्त नहीं होता।"x सुन्दरी से शिव का लग्न व वीरका जन्म इस के बाद धीर राजा से दी हुई सुन्दरी नाम की कन्या को उत्सव पूर्वक राजा शिवने स्वीकार कर ली। बाद में राजा धीर को पुनः राज्य देकर सुन्दरी के साथ सुख पूर्वक रहता हुआ क्रमशः राजा शिव अपने नगर में आ गया। इसने सर्व गुण संपन्न श्री सुन्दरी को पट्टरानी बना दी और सर्वज्ञ प्रभुश्री से कहा गया धर्म पालने लगा। क्यों कि सत्य से धर्म उत्पन्न होता है और वह दया और दान से बढ़ता है, क्रोध और लोभ से नष्ट हो जाता है परन्तु कुछ समय के बाद कुसंग में पड़कर राजा शिवने कुछ भी धर्म नहीं किया / दुर्बुद्धि के कारण सदा सात व्यसनों का ही सेवन करता रहा। कुछ दिन के बाद शुभ मुहूर्त में श्रीमती को एक अत्यन्त सुन्दर x उत्तमानां प्रणामान्तः कोपो भवति निश्चितम् / नीचानां न प्रणामेऽपि कोपः शाम्यतिक हिचि // 226 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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