Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 500
________________ 404 विक्रम चरित्र यह सब सोचकर देवमाया से श्रीमतीने चाण्डाली का रूप धारणा किया और मदिरा पीती हुइ तथा मांस खाती हुइ वह. अत्यन्त मलीन वस्त्र और भद्दारूप धारण करके मनुष्य की खोप्परी हाथमें लेकर उस में सड़क पर पानी सींचती हुई धारे धीरे चलने लगी। इस प्रकार की क्रिया करने वाली उस स्त्रीको देखकर सभा में बैठे हुए राजा शिवने कहा कि 'हे मंत्री ! यह चाण्डाली रास्ते पर जल क्यों छीटकती है ? राजा की आशा से चाण्डाली को जल छीटकने का कारण पूछना राजा के इस प्रकार प्रश्न करने पर मुख्य मंत्री राजाकी आज्ञासे उस चाण्डाली के पास पहुँचा। और कहने लगा कि- हाथमें खप्पर लेकर तथा मदिरा पीति हुई और मांस भक्षण करती हुई हे चाण्डालि ! मार्ग में जल छीटकने का क्या कारण है ? इस प्रकार मंत्रीने प्रश्न किया जिससे वह सभा में आकर संस्कृत भाषा में कहने लगी कि इस मार्ग से कभी कूट साक्षी देने वाला, मिथ्या बोलने वाला, कृतघ्न, बहुत देरीतक क्रोध रखने वाला, शिकार, पर द्रोह, मद्यपान आदि में कोई लीन मनुष्य गया होगा। इसी लिये जलसे सींचकर इस मार्ग को मैं पवित्र कर रही हूँ।' . यह सुनकर मंत्रिने कहा कि 'हे चाण्डालि ! तुम ऐसा न बोलो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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