________________ विक्रम चरित्र अधम मैं किस प्रकार इन पाप समूहों से छुटकारा पाऊँगा।' . . इस के बाद चाण्डाली राजाका धर्मानुसारी चित्त देखकर शीना ही अत्यन्त प्रकाशमान आभरणवाली देवी रूप प्रगट होकर राजा के आगे खड़ी हो गई तब राजाने उस देवी को पूछा कि 'तुम कौन हो और यहा किस प्रयोजनसे आई हो ? पाण्डाली का रूप धारण करने का कारण इस के बाद देवीने अपने पूर्व जन्म का सब वृत्तान्त राजा को सुना दिया / बाद में कहने लगी कि 'हे राजन् ! मैंने तुम्हें पाप कर्म से. सावधान करने के लिये ही यह चाण्डलीका रूप बनाया है / ' तब राजाने कहा कि 'हे देवि ! मैंने मूर्खता के कारण बहुत पाप किया है अतः अवश्य अत्यन्त कष्टकारक नरक में मेरा पतन होगा। तुमने स्वर्ग आदिक सुख देनेवाला जीवदयारूप धर्म किया और स्वर्ग के सुखों को भोगकर देवीका स्वरूप प्राप्त किया। ___ इसके बाद राजाने तत्काल सब व्यसनों को त्याग दिया / बाद में देवीने कहा कि 'तुम धर्ममें दृढ रह कर जीवदया का पालन करो।' इस प्रकार राजाको धर्म में लगाकर वह देवी राजा तथा उस के पुत्र को दो दो दिव्य रत्न देकर पुनः स्वर्ग चली गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org