Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 507
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित mmmmmmm ____ इस तरह यशस्वी महाराजा विक्रमादित्य राजसभामें प्रजा और राज्य का वृत्तान्त सुनकर योग्य सब वातों का अदल इनसाफ कर के. राजसभा बरखास्त करके मंत्रियों के चले जाने पर भट्टमात्र से कहने लगा कि 'प्रचुर लक्ष्मी का दान कर के सारी पृथिवी को ऋण रहित कर दी है / अब अपने क्या करना चाहिये ?' भट्टमात्र कहने लगा कि 'श्रीरामचन्द्रजी आदि राजा पूर्व में बहुतसी पृथिवी को अपने अधीन करके बड़ा कीर्तिस्तम्भ बनवा गये। इसलिये आप भी प्रचुर धन खर्च करके एक कीर्ति-तम्भ बनवाईये।' कीर्तिस्तम्भ के लिये आज्ञा / तब राजाने सब मंत्रियों को बुलाया और कहाकि आपलोग' बहुतसा धन लो और कीर्ति-स्तम्भ बनवाओ। तुरंत ही गजाने सूत्रदार आदि को बुलबा कर यह राज भंडारसे धन लेकर बड़ा भारी एक कीर्तिस्तंभ बनावो एसी आज्ञा फरमाई / * - इस के बाद आज्ञा के अनुसार मंत्रियों ने कीर्ति-स्तम्भ का कार्य जोरसे जारी कर दिया। सांढ और भैंसा के. झगडे में राजा का संकट में फसना इधर रात्रि में जब नगर लोगों का आना जाना रूक गया तब घूमता हुआ राजा विक्रमादित्य कृष्ण नाम के ब्राह्मण के घर के पास आया। + तअश्च क्रियये कीर्तिस्तम्भो भूरिधन व्ययात् / राजा ततः समाकार्य सूत्रधारान् जगावरः // 287 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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