Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 509
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित आत्मीय नहीं होता तथापि प्रजा राजा के इष्ट की ही कामना करती. है / इस के बाद वह ब्राह्मण स्वयं उठ कर राजा की शान्ति के लिये अच्छे अच्छे पुष्प आदि की बलि देकर शान्ति कर्म करने लगा। इधर भैंसा और सांढ परस्पर के झगड़े को छोडकर अलग हो गये / यह देखकर राजाने उस ब्राह्मण के घर पर निशान लगा दिया और वहाँसे लौटकर अपने महल में जाकर सो गया / प्रातःकाल उठ कर सभा में आकर राजा बैठा और उस ब्राह्मण को बुलाने के लिये राजसेवकों को भेजा। राजसभा में ब्राह्मण को बुलाना और आदर करना राजा का आदेश सुन कर ब्राह्मणी ने कहा कि 'हे प्रिय ! जो आपने रात्रि में शान्ति की है उस का ही यह फल है कि इसप्रकार की राज-आपत्ति आ गई / अब न जाने छली राजा हम दोनों की क्या गति करेगा ? क्यों कि पोपण करने पर भी राजा आत्मीय नहीं होता। . इस के बाद ब्राह्मण राजसभामें उपस्थित हुआ। तब राजाने पूछा कि 'हे ब्राह्मण ! आपने मेरे विन को कैसे जाना और क्यों हटाया ? ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि 'मैंने ज्योतिष शास्त्रानुसार लग्न के बल से ही आप के विन को जाना और मैंने उसे इस लिये हटाया कि लोग जिस की छत्रछाया में निवास करते हैं उस राजा के सतत आदर पूर्वक विजय की इच्छा करते हैं।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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