________________ "414 विक्रम चरित्र रात्रि में राजा की जो घटना बनी वह सब दिन में राजा ने अपनी राजसभामें नगर की प्रजा को कह सुनाई और ब्राह्मण को प्रचुर ‘धन देकर प्रसन्न किया / राजा ने सातों कन्याओं के विवाह के लिये ब्राह्मण को बहुत द्रव्य दिया / इस प्रकार उस ब्राह्मण को तथा सब प्रजा को प्रचुर दान देकर और सुखी करके बहुत सा धन खर्च करके अपना कीर्ति-स्तम्भ बनवाया / // सप्तमः सर्गः समाप्तः // उपसंहार प्रिय पाठक गण ! यह सप्तम सर्ग में अवधूत रूप में आये हुए पूज्य सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी के चमत्कार को, लिङ्ग के प्रति पेर रख के सोना, रानीवास में मार पडना, राजा का महाकाल मंदिर में आना, इष्ट देव की स्तुति द्वारा लिङ्ग भेदन होकर पार्श्वनाथ का प्रगट होना व सूरिजी के उपदेश को महाराजा विक्रमादित्य का सुनना, श्रीमती व शिव की कथा, शिव को बचाने के लिये श्रीमती रूपदेव का मृत्यु लोक में आना व शिव को पाप से बचानेके लिये आना राज मार्ग में चण्डालीका रूप धारण कर के जल छीटकना तथा विक्रमादित्य का कीर्तिस्तम्भ के लिये मंत्रीयों से कहना व साँढ और भंसा की लड़ाई में फसते हुए राजा का शांति कर्म से ब्राह्मण द्वारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org