Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 508
________________ 412 विक्रम चरित्र mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm उस जगह पर अकस्मात् सांढ और भैंसा कहीं से आगये और परस्पर झगड़ने लगे। दैव संयोग से महाराजा बड़े संकट में फस गये। एकाएक उस ब्राह्मण की निद्रा खुल गई और उठ कर आकाश में देखा तो तारामंडल में दो दुष्ट ग्रहों को देख कर अपनी पत्नी से कहने लगा "कि 'हे प्रिये ! शीत्र उठो और दीपक जलाओ। क्यों कि आज अपनेमहाराजा महान् भयंकर संकट में पड़े हुए है। इसकी शान्ति के लिये मुझे बलि देनी चाहिये / राजा की शान्ति के लिये ब्राह्मणका शांति कर्म उस की स्त्री कहने लगी कि 'हे प्रिय ! घर में सात कन्यायें विवाह के योग्य हो गई हैं खाने के लिये एक टंक का भोजन सामग्री भी नहीं है, न दूध है, न प्राण वचाने के लिये मुंगादि है। खीचड़ी में कोरडू रह जाता है उसी तरह आज अवन्ती नगरी में भी यह ब्राह्मण विचारा दरिद्र रह गया है। मामूली धान्य भी नही है ज्यादा क्या कहु आज तो शाक में डालने को नमक तक भी तो घरमें नहीं है और अपना राजा तो आज कीर्ति-स्तम्भ बनवा रहा है। राजा को अभी यह खबर नहीं कि अन्न और वस्त्र बिना प्रजा अत्यन्त दुःखी है। जैसे दुनिया में जो दरिद्र है वह सब को दरिद्र ही समझता है। धनी व्यक्ति सब को धनी ही समझता है / सुखी सत्र को सुखी ही मानता है / मनुष्यों की यही रीति है / ' पति-पत्नी का विवाद तब ब्राह्मण ने पुनः कहा कि 'हे प्रिये ! राजा किसी का भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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