________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 405 जलसे स्नान करने पर भी चाण्डाल लोग कदापि शुद्ध नहीं होते।' चाण्डाली कहने लगी कि 'कूट साक्षी देने वाला, मिथ्या बोलने वाला, कृतघ्न, बहुत देरी तक क्रोध रखने वाला, शिकार मद्यपान करने वाला तथा इसी तरह के अन्य पाप कर्म करने वाला मनुष्य जलसे पवित्र नहीं होता / पुराण में भी कहा है कि:-- ___ "दुष्ट अन्तःकरण वाला मनुष्य तीर्थ में अनेक वार स्नान करने पर भी शुद्ध नहीं होता / वह तो मदिरा के पात्र के समान अनेकवार प्रझालित होने पर भी अपवित्र ही रहता है / "+ राजाने चाण्डाली की ये सब बातें मंत्री द्वारा सुनी और उसको समीपमें बुलवाई / वह भी जल सिंचती हुई राजा के समीप आई तथा वहाँ जल सिंचकर बैठी। उसको राजाने इस प्रकार करते देखा और उस पर अति क्रुद्ध हुआ लथा उसको मारनेका सेवकोंको आदेश दे दिया। . सेवकों के अनेक प्रकारसे मारने पर भी उस के शरीर पर मार का कुछ भी असर नहीं हुआ। यह देखकर राजा आश्चर्य चकित हो गया और सोचने लगा कि 'यह स्त्री व्यन्तरी, किन्नरी अथवा देवी होनी चाहिये / कारण कि यदि यह मानवी होती तो इस प्रकार मारने पर तुरंत मर जाती / इसलिये निःसंदेह यह किन्नरी अथवा देवी है / इस समय मैंने देवी की निश्चय ही आशातना की है। इस प्रकार का . + चित्तमन्तर्गत दुष्टं तीर्थस्नानैर्न शुद्धयति / शतशोऽपि जलधौत सुराभाण्डमिवाशुचि // 251 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org