Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 503
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 407 इस के बाद राजाने सब व्यसनों को __त्याग कर नगर में सुन्दर रत्नों से जडित एक जैन मंदिर बनाया। बाद में सोलहवे भगवन्त श्री शान्तिनाथ के प्रतिमाकी महोसव सहित पू. सूरीश्वरोके पवित्र हस्तकमलों से प्रतिष्ठा करवाई / कारण कि"धर्मसे प्राप्त हुई लक्ष्मी को धर्म में ही लगाना चाहिये / क्यों कि धर्म लक्ष्मी को बढाता है तथा लक्ष्मी धर्म को बढाती है।" * ___ जो सदाचारी पुरुष स्वच्छ मनसे अपनी भुजा के बल से उपार्जित धनके द्वारा मोझ के लिये सुन्दर जिनालय बनवाता है वह राजेन्द्र तथा देवेन्द्र से पूजित तीर्थकर पदको प्राप्त कर लेता है। वास्तव में उसका ही जीवन सफल है जो जिनमत को पाकर अपने कुलको प्रकाशित करता है / जिनालय बनवाना, प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करना, तीर्थयात्रा करना, धर्म प्रभावना करना, प्राणीवधनिषेध की घोषणा करना ये सब महापुण्य के देनेवाले होते हैं। इसके बाद राजाने एक दिन श्रेष्ट पुष्पों से श्रीशान्तिनाथ की पूजा करके अत्यन्त मनोहर नैवेद्य अर्पण किया और अत्यन्त भक्ति भावनासे अतीव उत्तम अर्थवाले स्तोत्रों से प्रभुके गुणोंका गान करने लगा। श्रीशान्तिनाथ प्रभु के आगे एकाग्र चित्त भावना करते करते राजा शिवको वहाँ ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया। क्यों कि मनुष्य कोटि जन्मो * धर्मादभ्यागतां लक्ष्मी धर्म एव नियोजयेत् / यतो धर्मस्य लक्ष्म्याश्च दत्ते वृद्धि द्वयोरपि // 267 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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