Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 497
________________ 401 ' मुनि निरंजनविजयसंयोजित राजा शीघ्र ही युद्ध के लिये ? हो गया / इसके बाद दोनों तरफ की सेनाओं में परस्पर भयंकर युद्ध होने लगा / युद्धमें सामने खड़ी शिवकी सेनाको राजा धीरने क्रोधसे मनात पी . रक्तनेत्र होकर नष्ट करदिया। अपनी सेनाको नन्न SGAR ant / शीघ्र ही स्वयं युद्ध करने के लिये रक्तनेत्र होकर राजा शिव भी तैयार हो गया। बाद में क्षण मात्र में ही समुद्रके समान वैरीकी सेना को मथ दिया और साधारण पक्षीके समान राजा धीर को बांध लिया। धीरके जितने भी सेवक थे वे सब सूर्योदय होने पर अंधकारके समान दशों दिशाओं में भाग चले / क्यों कि चन्द्रबल, ग्रहबल, ताराबल, पृथिवीवल ये सब तब तक ही रहता है, तथा मनोरथ भी तब तक ही सिद्ध होता है और मनुष्य तब तक ही सज्जन रहता है, मुद्रासमूह, मंत्र, तंत्रकी महिमा. या पुरुषार्थ तब तक ही काम करता है जबतक प्राणिओंका पुण्य का उदय रहता है / पुण्य के क्षय होने से सभीकुछ नष्ट हो जाता है / विना फल्बाले वृक्षको पक्षी भी छोड़ देते है। जल सूख जानेपर सारस सरोवर का त्याग कर देता है / भ्रमर शुष्क पुष्पको त्याग देते हैं। वन जल जाने पर मृग वनको छोड़ देते हैं। बेश्या धनहीन पुरुष का त्याग कर देती है / अर्थात् सब कोई स्वार्थ वश ही 26 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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