Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 495
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित इसी प्रकार जी प्राणी अपने हृदय में सतत विशुद्ध भावना रखता है वह राजा शिवके समान शीघ्र ही मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। जिस की कथा अगले प्रकरणमें बताई जाती है। ' प्रकरण बत्तीसवाँ शुद्धभावना पर शिव राजाकी कथा .. राजा शिव की कथा इस प्रकार है "श्री वर्द्धनपुर में न्याय परायण शूर नाम के राजा को पद्मा नाम की स्त्री से शिव नामका पुत्र हुआ। वह सब शुभ लक्षणों से युक्तथा / उसको राजा सूरने पंडितके पास भेजकर पढाया / शिवने अल्प समय में ही सब कलाओं को सीख लिया / क्यों कि जीवलोक में जन्मलेकर मनुष्य को दो वस्तुएं अवश्य सीखनी चाहियें। एक तो किसी भी तरह न्याय नीतिसे सुखपूर्वक जीवन निर्वाह करे और दूसरा शुभ म कर्म करें जीससे मरने पर जीव सुगति प्राप्त करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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