Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 489
________________ 393 मुनि निरंजनविजयसंयोजित को चला गया। हेमवतीने भी शील के महात्म्य से इस जन्म में दीक्षा लेकर तपस्या करके मुक्तिको प्राप्त किया।" इस तरह अनेक प्रकार शीलका महात्म्य गुरु महाराजने कहा / बादमें तपके विषयमें कहने लगे। तपका प्रभाव व तेजःपुंज नमस्कार पूर्वक निरंतर तप करता हुआ मनुष्य तेजःपुज के समान स्वर्ग और मुक्ति की लक्ष्मी को प्राप्त करता है। इसकी कथा इस प्रकार है-" चन्द्रपुर नाम के नगर में चन्द्रसेन नामका एक राजा था। उसको चन्द्रावती नामको रानी से तेजःपुंज नामका पुत्र हुआ। यह पांच दाइयों द्वारा स्तन्यपान आदि से पारित होता हुआ शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के समान बढने लगा। राजा ने इस को उत्सव के साथ पंडित के पास पढ़ने के लिये भेजा। इसने पूर्णिमा के चन्द्र के समान क्रमशः सब कलाओं को ग्रहण करली। क्यों कि जल में तेर, दुर्जन में गुप्त बात, सुपात्र में दान, बुद्धिमान् में शास्त्र थोडा रहने पर भी वस्तु स्वभाव से ही विस्तृत होजाता है। वह तेजःपुंज कुमार युवावस्था को प्राप्त कर अपने माता पिता के चरण कमलकी सेवा करता हुआ सब विद्वानों का मनोरंजन करने लगा। बाद राजाने जितशत्रु राजा की कन्या रूपसुन्दरी से अत्यन्त उत्सव पूर्वक तेजःपुंजका विवाह कराया। पश्चात् अपने पुत्र को राज्य देकर राजाने अष्टाह्निक-महोत्सव किया। बाद में तपस्या कर के अपनी प्रिया के साथ राजा चन्द्रसेन ने धर्म कार्यके बल से स्वर्ग को प्राप्त किया / क्यों कि तप और नियम के पालन करने से मोक्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516