Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 490
________________ विक्रम चरित्र होता है, दान देने से उत्तम भोग प्राप्त होता है, देवार्चन करने से राज्य मिलता है, अनशन यानी तपस्या करने से इन्द्रपणा सहज में ही प्राप्त होजाता है। क्रमशः वह राजा तेजःपुंज पूर्व भव में उपार्जित पुण्य के प्रभाव से अनेक विविध सुखों का उपभोग करता हुआ अपने शत्रुओं को सेवक बनाने लगा। क्यों कि आरोग्य, भाग्यका अभ्युदय, प्रभुत्व, शरीर में बल, लोक में महत्व, चित्त में तत्त्व, घर में सम्पत्ति ये सब मनुष्यों को पुण्य के प्रभाव से ही प्राप्त होते है। CAMESS त्र PEE एक दिन श्री धर्मघोष नामक गुरु महाराज को नगर बाहर उद्यान में आये हुए सुन DARDAR कर राजा तेजःपुंज अत्यन्त हर्षित मन से धर्म के रहस्य को सुनने की इच्छा से उनके पास गया / वहाँ जाकर गुरु महाराज को तीन प्रदक्षिणा विधिARTHREवत् करके उन के पास 22107 बैठ गया। इस संसार में अच्छा राज्य मिल सकता है, अच्छे अच्छे नगर मिल सकते है परंतु सर्वज्ञ महापुरुष से कथित विशुद्ध धर्म पुष्यहीन प्राणी को अप्राप्य है। कहा भी है कि : R NERATE 4 Mic Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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