Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 465
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 373 wwwA लगा और अपने उपार्जित धन को सतत पुण्य कर्मों में व्यय करके सफल करने लगा। काजल तजे न श्यामता, मोती तजे न श्वेत दुर्जन तजे न कुटिलता, सजन तजे न हेत॥ उपसंहार प्रिय वाचकगण ! आपने इस प्रकरण में महाराजा के गर्व का खंडन व अति बलिष्ठ कृषिकार का चरित्र पढा / जिस से आप को आश्चर्य हुआ / बाद में भील-भीलडी की मृत्यु और उनका दूसरा जन्म जो कि जगत के जीवों के लिये बोधदायक घटनारूप है। मित्र सोमदन्त कपट करके विक्रमचरित्र को आपत्ति में रखता है वह भी पुण्यशाली राजकुमार को फायदाकारक हो जाता है और भारण्ड पक्षी का मिलन, उस की विष्टा की गुटिका ए सभी बातें कुतूहल प्रिय राजकुमार को सचमुच ही कुतूहल उत्पन्न करती हैं, बाद में दो व्यक्तियों को जीवनदान देना यह भी राजकुमार के जीवन में रोमांचक बात है, वहाँ से फीर कनकश्री, भीम और महाराजा विक्रमादित्य और राजकुमार का मिलन ए सभी बाते पाठकगण में हर्ष उपजाकर विक्रमचरित्र के उद्देश्य को परिपूर्ण बनाती हुई यह प्रकरण खतम करती है। वैसे ही अगला प्रकरण भी आप लोगों को आश्चर्यमुग्ध बनायगा / परमोपकारी आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वरजी ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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