________________ 379 मुनि निरंजनविजयसंयोजित सूरीश्वरजी की वाणीसे सुना / विचार करते करते इस को अपने पूर्व जन्मका स्मरण हो आया। अपने पूर्व जन्मका हाल जानकर यह सूरीश्वरजी के पास गया और पूछा कि क्या आप नलिनीगुल्म विमानसे यहाँ आये हैं ? सूरिजीने उत्तर दिया कि 'मैं शास्त्र बलसे उस विमान की यथार्थ स्थिति जानता हूँ।' भद्रापुत्रने पुनः कहा कि 'आप नलिनीगुल्म के सुखको समझाइये / इसके उत्कर्ष सुख के बिना मैं अपनी जिन्दगी व्यर्थ समझता हूँ / इस विमानकी प्राप्तिका मार्ग बताइये / ' ___ सूरिजी ने कहा कि नलिनीगुल्म विमान की प्राप्ति दीक्षा के बिना कभी भी संभवित नहीं है।' भद्रापुत्रने कहा कि 'हे गुरुदेव आप मुझको शीघ्र ही दीक्षा दीजिये। सूरिजीने कहा कि 'मैं तुमको अभी दीक्षा नहीं दे सकता / तुम अपने माता-पितासे पूछ कर आज्ञा लेकर दीक्षा लो / ' भद्रापुत्र की स्वयं दीक्षा भद्रासुतने इस प्रकार सूरिजी से बातकर बाहर उद्यान में जाकर स्वयं दीक्षा ले ली और योगीके समान शरीरका त्याग करने के लिये नलिनीगुल्म विमान का ध्यान करता हुआ बैठ गया। वह इस प्रकार ध्यान में लोन था उस समय उसकी पूर्व जन्मको स्त्री जो इस जन्म में शृगाल जाति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org