________________ M 390 विक्रम चरित्र न्याय-नीतिपरायण राजा था। उन को हेमवती नामकी सुशीलसंपन्न दयावाली रानी थी। उन दोनों राजा-रानी के दिन श्री जिनेश्वरोक्त धर्म के आचरण करने में ही बीतते थे और सद् गुरु की सेवा भी प्रेम से किया करते थे। विद्याधर के द्वारा हैमवती का हरण एक समय वसन्त ऋतु में हेमवती के साथ राजा धीर उद्यान में कीडा करने के लिये गया। इसी समय में अदृष्ट गतिवाला कोई विद्याधर किसी के मुख से हेमवती की अत्यन्त श्रेष्ट रूप शोभा सुनकर उसे हरण करने की इच्छा से वहाँ आया। बाद उद्यान में क्रीडा करते हुए राजा के समीप से हेमवती को हरण कर अतिशय गतिवाला वह विद्याधर वैताढ्य पर्वत पर चला गया। वहाँ जाकर बोला कि 'हे हेमवति ! इस चांदी के पर्वत पर दक्षिण कोण में तथा उत्तर कोण में पचास और साठ नगर हैं। जिस में विद्या को धारण करने वाले तथा सौन्दर्य से देवताओं को भी जीतने वाले विद्याधर लोग रहते हैं। इन में नागकेसर, चंपा, माकन्द, अशोक आदि वृक्ष तथा वापी, कूप तथा सुन्दर तराव आदि स्थानों को तुम देखो। मैं बड़े अच्छे रत्न कमल आदि से युक्त रत्नवती नगर में विद्याधरों से सेवित होकर सुखपूर्वक राज्य कर रहा हूँ। यह रत्नमय सात मजल का महल मेरा ही है / सभी ऋतुओं में पुष्प, फल आदि से परिपूर्ण रहने वाला यह मेरा बाह्य उद्यान है। प्रज्ञप्ति आदि विद्यादेवियों अभिलषित सुख मुझे देती रहती हैं और अत्यन्त निर्मल रूप और लावण्य से युक्त होकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org