________________ 389 मुनि निरंजनविजयसंयोजित करता हुआ रानी के अभयदान के प्रत्युपकार को चिन्ता करता हुआ सोचने लगा कि मैं रानियों को कब दिव्य रत्न आदि देकर अपने उपकार का बदला चुका कर ऋण रहित हो जाऊँ / ' यह सोचकर वह ग्वर्ग से रानियों के पास आया और उन्हें प्रणाम कर के बाद में अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त कह सुनाया और रूपवती को कोटि मूल्य का दिव्य हार तथा दो कुंडल दिये / अन्य छै रानियों को भी दो दो कुंडल दिये / राजा को दिव्य सिंहासन तथा मुकुट दिये। बाद में प्रणाम कर के वह देव स्वर्ग चला गया। श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वरजी महाराज दाटक महाम्य के संवधमें सती हेमवतीका वृत्तान्त सुनाते है। दान व शील का प्रभाव ___ इस के बाद वह राजा दरिद्रों को सतत दान देने लगा तथा अपने गन्य में किसी को भी चोरी न करने की घोषणा कराई। अपनी पत्नियों के साथ गुरु महाराज के पास सद्धर्म श्रवण करके दान, शील, तप और भाव इन चारों प्रकार के धर्म का पालन करता हुआ दान के उत्कृष्ट प्रभाव से वर्ग को प्राप्त किया। पुनः वह मनुष्य जन्म प्राप्त कर माता पनियों के साथ कर्म का क्षय होने पर मोक्ष को प्राप्त करेगा। इस प्रकार जो कोई मनुष्य दान या धर्म की आराधना करेगा वह शीघ्र ही मुक्ति सुख को प्राप्त करेगा। शीलवत पर हेमवती की कथा जो मनुष्य शील व्रत का सदा पालन करते हैं वे हेमवती के समान शी ही कल्याण और सम्पत्ति को प्राप्त कर लेते हैं। हेमवती की कथा इस प्रकार है ----" लक्ष्मीपुर में धीर' नामक एक अत्यन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org