________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 383 क्यों कि दान करने से मुक्ति और सुख दोनों मिलते हैं। कारण कि दान करने से सर्वत्र व्यापिनी निर्मल कीर्ति फैलती है। जिसने दान नहीं किया उसक जीवन पानीके समान बह कर चला जाता है / श्री ऋषभदेवने पूर्व जन्म में धन सार्थवाह के भव में बहुत सा घी आदि का दान किया इसी कारण वे त्रैलोक्य के पितामह हो गये / " जिन्हों ने जन्मान्तर में पुण्य किया है, जो सब प्राणियों पर दया करने वाले हैं तथा दीन को दान देने वाले हैं वे तीर्थकर व चक्रवर्ती की ऋद्धि और सम्पत्ति के स्वामी श्री शान्तिनाथ प्रभु हुए हैं। " + मरने के बाद जो दान दूसरों द्वारा दिया गया हो उस का फल मृत जीव को मिले या न मिले, इस का कोई निश्चय नहीं परंतु जो दान अपने हाथसे दिया जाता है वह अवश्य ही फल देनेवाला होता है इसमें अंश मात्र भी संदेह नहीं। कहा भी है किः “दान देने से धनका नाश हो यह कभी नहीं सोचना चाहिये। क्योंकि कूप, आराम, गाय, इन सबका दानमें-उपयोग न करे तो सम्पत्ति का नाश होता है।" : + करुणाइ दिन्नदाण जम्मंतर गहिअ पुण्ण किरिआणं / तित्थयरचकिरिद्धि संपत्तो संतिनाहो वि // 60 // मा संस्था क्षीयते वित्तं दीयमानं कदाचन / कूपारामगवादीनां ददतामेव सम्पदः // 6 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org