________________ -- AMATA AUTELyriiliundal SA EMES // अथ सप्तम सर्गः॥ प्रकरण इक्वतीसवाँ अवन्ती पार्श्वनाथ व सिद्धसेन दिवाकर कर भक्ति जिनराजकी कर परमार्थ काम; कर सुकृत जगमें सदा रहे अविचल नाम // सिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वरजी का चमत्कार श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजी बारह वर्ष तक अवधूत वेष से अनेक देशों में भ्रमण करते हुए, राजा विक्रमादित्य को मिथ्यात्व से ग्रसित सुन कर उसे बोध देने के लिये एक दिन मालव देश में गये। उज्जयिनी नगरी के महाकाल मंदिर में जाकर राजा को बोध करनेकी इच्छा से अवधूत वेष में ही लिङ्ग के सामने अपने दोनों पैरों को फैला के सो गये / इन्हें इस प्रकार सोये हुए देखकर मंदिर के पुजारी ने कहा कि 'हे सोने वाले! आप यहाँ से उठ जायँ, इस प्रकार देव के आगे नहीं सोना चाहिये / इस प्रकार बार बार कहने पर भी जब वह नहीं उठे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org