________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 335 ___“सरोवर में कमलों का समूह कहाँ ? अत्यन्त दूर आकाश में सूर्य कहाँ ? कुमुदों का समूह कहाँ ? और आकाश में चन्द्र कहाँ ? फिर भी इन सब की मैत्री अखण्ड ही रहती है / इसी प्रकार अत्यन्त परिचय से बद्ध सज्जनों की मैत्री दूर रहने पर भी विचलित नहीं होती अर्थात् नित्य स्थिर ही रहती है / "* विक्रमचरित्र की इस प्रकार की करुणा तथा स्नेह से परिपूर्ण बातें सुन कर सोमदन्त ने कहा "हे मित्र ! तुम क्यों ऐसी बातें बोलते हो / मैं तुम्हारे बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता।" सोमदन्त विक्रमचरित्र से छल पूर्वक प्रेम करता था। परन्तु विक्रमचरित्र सोमदन्त से निष्कपट प्रेम करता था। क्योंकि धूर्त मनुष्यों की तीन प्रकार की प्रकृति होती है। यथा--मुख कमल दल के समान सुन्दर होता है / वाणी चन्दन के समान शीतल होती है / परन्तु हृदय कर्तरी के समान छेदन करने वाला होता है। सोमदन्त ने कहा " हे मित्र ! जहाँ तुम जाओगे वहाँ मैं भी सुख, दुःख, वन, युद्ध सत्र जगह तुम्हारे साथ रहूँगा / जैसे दिन और सूर्य में अखण्ड स्नेह है , जिस से दिन के बिना सूर्य नहीं तथा सूर्य के बिना दिन नहीं होता / ठीक इसी प्रकार हमारी और तुम्हारी मत्री है।" . मित्र की बात सुन कर विक्रमचरित्र कहने लगा कि 'हे मित्र ! * क्व सरसि वनखण्डं पंकजाना क्व सूर्यः, क्व च कुमुदवनं वा कौमुदीबन्धुरिन्दुः / दृढपरिचयबद्धा प्रायशः सजनानां, नहि विचलति मैत्री दूरतोऽपि स्थितानाम् // 14 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org