Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 460
________________ 368 विक्रम चरित्र TITLINE हुआ वह फूल दे दिया। उस कन्या ने फूल के पत्ते पर लिखे हुए श्लोको को देखा और आश्चर्यान्वित हो गई। वह उसे पढने लगी तो उसमें लिखा था कि जिस वैद्यने चूर्ण के योग से कनंकश्री को देखने वाली बनादी, जिसने अनायास अपने सब शत्रुओं को अपने अधीन किया, जिसने अपना नाम पता पहले राजा को नहीं बताया परन्तु प्रस्थान करने के समय अपनी पत्नी द्वारा सब कुछ कहलाया, दिव्य सुवर्ण, मणि, चांदी आदिसे से भरे वाहनों को समुद्र में लेकर रवाना हुआ तथा वाहन के चलने पर जो समुद्र में गिर गया, वह तुम्हारा पति भाग्य संयोग से समुद्रसे निकला और इस समय इसी नगर में धीर नाम के मालाकार के घर में वास करता हुआ सुखपूर्वक समय विता रहा है। इसलिये हे प्रिये ! तुम अभी पटह का स्पर्श करके तथा वस्त्रान्तरित होकर राजा को सब समाचार कहदो / इन श्लोकोंसे अपने स्वामी का सब हाल जानकर कनकश्री ने उस मालिन को सम्मानित किया और स्वयं राजा के सेवकों द्वारा बजाये जाते हुए पटह का स्पर्श करलिया / Jain, Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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