Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 461
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 369 सेवकों द्वारा पटह स्पर्श का समाचार सुन कर महाराजा विक्रमादित्य भीम श्रेष्ठी के घर पर गये और वस्त्र से अन्तरित उस कनकश्री से पूछा कि 'हे पुत्रि ! मेरा पुत्र इस समय कहाँ है सो सब मुझे कहो / ' राजा और विक्रमचरित्र का मीलन .. ___ तब कनकश्री अपने स्वामी का सब समाचार सुनाने लगी। यहाँतक कि विक्रमचरित्र के अवन्तीपुर में पहुँचने तक का विस्तार पूर्वक सब समाचार सुनादिया। केवल वह स्वयं कौन है, वही नही कहा / कनकश्री के मुख से अपने पुत्र का समाचार सुनते हुए राजा अपने मन में सोचने लगा कि " क्या यह विद्याधरी, देवांगना, अथवा ज्ञानवती मेरे उपर कृपा करके सुखदेनेवाले मेरे पुत्र के समाचार कहने के लिये आई है ? / " राजा विक्रमादित्य अपने पुत्र की स्थिति तथा स्थान जान कर वहाँ से उठकर माली के घर पर पहुंचे। विक्रमचरित्र अपने पिताको आया हुआ देखकर सन्मुख आया और अपने पिता के चरणकमलों में भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। ठीक ही कहा है कि " वही सच्चा पुत्र है जो पिता का भक्त हो और वही पिता है जो प्रजाका पोषक हो।जहाँ विश्वास हो, वही मित्र है और वही स्त्री है जिससे सुख मिले। उपाध्याय से आचार्य दश गुण अधिक है। आचार्य से पिता सौगुणा अधिक है तथा पिता से माता सहस्रगुण अधिक है / यह न्यूनाधिक भाव परस्पर गौरव के आधिक्य से है / पशुओं के लिये मा दूध पीने के समय तक ही माता है, अधमों के लिये स्त्री प्राप्ति पर्यन्त ही माता रहती है, और मध्यम व्यक्तियों के लिये जबतक गृहकार्य में समर्थ हो, तब तक ही 24 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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