________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 339 जाय तो भी वह सज्जनों को कलह ही देता है / दूध से धोने पर भी काक कभी हंस हो सकता है ? विशिष्ट कुल में उत्पन्न होकर भी जो दुर्जन है, वह दुर्जन ही रहेगा, कदापि सज्जन नहीं हो सकता। चन्दन से उत्पन्न होने पर भी अम्नि लोगों को जलाता ही है। दुर्जन व्यक्ति दूसरों के राई के समान सूक्ष्म छिद्र भी देखता है। परन्तु अपने बड़े बड़े छिद्रों को नहीं देखता है / गधा यदि घोडा हो जाय, काक यदि कोकील हो जाय, बक यदि हंस के समान हो, तो दुर्जन सजन हो सकता है।' नेत्र निकालकर दे देना ___ विक्रमचरित्र मार्ग में चलते हुए यदि कोई नवान खाद्य वस्तु मिलती, तो पहले मित्र को देता, फिर बाद में स्वयं खाता था। इस प्रकार की प्रीति रखते हुअ कुमार ‘सुन्दर' नामक वन में कौतुकों को देखता हुआ क्रमशः आगे बढने लगा। वहां एक सरोवर में जल पीकर दोनों एक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गये। तब वार्तालाप करते हुए सोमदन्त ने हास्य से कहा कि 'हे राजकुमार! तुम चूत में तुम्हारे दोनो नेत्र हार चुके हो। उसकी यह बात सुन कर विक्रमचरित्र ने तुरन्त ही छुरी से दोनों नेत्र निकाल कर मित्र को दे दिये। जो अच्छे घोडे होते हैं वे कदापि कशाघात को सहन नहीं कर सकते। सिंह मेघ के शब्द को सहन नहीं कर सकता। वैसे ही मानी व्यक्ति दूसरे के अङ्गुलि निर्देश को सहन नहीं कर सकता। मैं कहीं भी किसी समय अपनी प्रतिज्ञा से विमुख नहीं होता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org