________________ 338 विक्रम चरित्र अपना राज्य छोडना पडा था। अपनी स्त्री से मी. उसका वियोग हुआ। यतसे ही पांच पाण्डवों को वनवास-आदि दुःख भोगना पडा था। यत, मास, मदिरा, वेश्या, शिकार, चोरी करना, और परस्त्री गमन-ये सात व्यसन लोगों को घोर नरकमें ले जाते हैं।" विक्रमचरित्र का नेत्र हारना ___ पर सोमदन्त के अति आग्रह से विक्रमचरित्र द्यूत खेलने लगा तब सोमदन्त ने कहा कि 'हे मित्र ! बिना बाजी लगाये द्यूत अच्छा नहीं लगता, जैसे चन्द्रमा के बिना रात्रि शोभित नहीं होती। इसलिये कुछ बाजी लगा कर के द्यूत खेलें। द्यूत में जो एक सौ कंकरो से हारे वह अपना एक नेत्र हार जायगा।' इस प्रकार दोनों ने मिलकर शर्त कि और फिर दोनों खेलने लगे / खेलते खेलते विक्रमचरित्र एक नेत्र हार गया। खेल ही खेल में विक्रमचरित्र अपना दूसरा नेत्र भी हार गया। यों भी द्यूत खेलने वाले तथा स्त्री का ध्यान और दर्शन करने वाले पुरुषों के निश्चय पूर्वक नेत्र और हृदय दोनों अन्धे हो जाते हैं। कपट वार्तालाप जब सोमदन्त ने कुमार के दोनों नेत्र जीत लिये, तब वह इस प्रकार सोचने लगा कि -- अभी इससे दोनों नेत्र की याचना करने से क्या लाभ ? जब ईसको राज्य मिलेगा तब ही याचना करना ठीक है। उस समय इसके नेत्रों के साथ साथ छल कर के घोडे आदि से सुशोभित इसका राज्य भी ले लूंगा'। कहा है कि 'खल का सत्कार किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org