________________ 348 विक्रम चरित्र निरोगी व दिव्य शरीर वाला बना दूंगा।" श्रीद श्रेष्ठी के पुत्र को निरोगी बनाना ___ वह राजकुमार तथा श्रीद दोनों उस के घर गये। वहाँ जाकर उसने अनेक वस्तुओं मंगवाई और बड़ा आडम्बर करके उसके पुत्र को उन गुटिकाओं के विलेपन से बिलकुल नीरोगी बना दिया। जब पुत्र नीरोगी हो गया तो श्रेष्ठीने कुमार का खूब आदर-सत्कार किया तथा भोजन आदि कराकर उसे प्रसन्न किया, फिर विक्रमचरित्र उसी श्रेष्ठी के यहाँ सुख पूर्वक रहा / कहा भी है कि-' विदेश में रहने पर भी भाग्यवानों का भाग्य जाग्रत ही रहता है। जैसे मेघद्वारा आच्छादित होने पर भी सूर्य की किरणें अन्धकार का नाश करती हैं।' राजपुत्री की काष्ठभक्षण यात्रा व उसे रोकना दस दिन पूरे होजाने पर कनकश्री अपने पिता से मिल कर काष्टभक्षण करने के लिये अश्व पर आरूढ हो कर राजमार्ग द्वारा जाने लगी। वाद्यों का शब्द सुनकर उस राजपुत्री को देखने के लिये बहुत सी स्त्रियाँ अपना अपना कार्य छोड कर आने लगीं। विक्रमचरित्र ने भी वाद्य के शब्द सुन कर श्रीद श्रेष्ठी से पूछा कि 'यहाँ पर इतने लोग क्यों एकत्रित हुए हैं ?' श्रेष्ठी ने उस राजपुत्री के बारे में सब हाल आदि से अंत तक कह सुनाया / उसकी यह बात सुन कर विक्रमचरित्र अपने मस्तक को हिलाने लगा / श्रेष्टीने पूछा कि 'आप सिर को क्यों हिला रहे हैं ? इसका कारण कहो।' कुमारने उत्तर दिया कि 'यह कन्या व्यर्थ ही मर जायगी।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org