Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 451
________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित देकर उसकी अवज्ञा की है / परन्तु जामाता ने कुछ भी विकार अपने मन में नहीं दिखाया है / इस प्रकार के सुजन व्यक्ति का अपमान करने के कारण निश्चय ही मुझ को पश्चात्ताप करना चाहिये। इसकी सज्जनता अत्यन्त अद्भुत है। ___ “सज्जन अच्छे का पक्ष ग्रहण करता है तो बाण का पंख अच्छा होता है, दोनों ही ऋजु होते हैं-एक सरल स्वभाव का, दूसरा सीधा / दोनों ही शुद्ध होते हैं--एक पवित्र हृदय, दूसरा चिकना / दोनो गुण सेवीं होते हैं-एक दया, दाक्षिण्य आदि गुणों का सेवन करने वाला, दूसरा धनुष्य का गुण (डोरी) का सेवन करने वाला। इस प्रकार तुल्य गुण होने पर भी यह आश्चर्य है कि सज्जन सज्जन ही है और शरशर (बाण) ही है।"x राजा का पश्चात्ताप राजा ने अपनी पुत्री की बात सुन कर अपने जामाता को अपने यहाँ बुलवाया और कहा कि 'मैंने अज्ञान से आज तक आपका बहुत बड़ा अपराध किया है, इसके लिये दया करके आप मुझ को क्षमा करिये और मेरा यह सब राज्य स्वीकार करिये / ' वैद्यराज विक्रमचरित्र ने कहा कि 'हे राजन् ! मुझ को अब आप के राज्य से कोई प्रयोजन नहीं है / मुझे केवल अपने माता-पिता x सत्पक्षा ऋजवः शुद्धाः सकला गुणसेविनः / तुल्यैरपि गुणैश्चित्रं सन्तः सन्तः शराः शराः // 294 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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