________________ 364 विक्रम चरित्र तो वह रोते रोते दूसरों को भी रुलाने लगी। लोग भीम को समझाने लगे कि तुम क्यों बार बार रोते हो। अपने कर्म से कोई देव भी छुटकारा नहीं पाते / क्यों कि पूर्व में जो कर्म किया होता है, उसका कोटि कल्प बीत जाने पर भी क्षय नहीं होता / इसलिये अपने किये हुए शुभाशुभ कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। घर पहुंचना भीमने कुछ देर बाद माया करके पुनः सेवकों से कहा कि 'जहाज शीघ्र चलाओ / अब मैं अपने नगर को जाऊँगा / ' सब मनुष्यों को द्रव्यादि का दान देकर सम्मानित किया और वह दुष्टबुद्धि भीमं एकान्त में कनकश्री के समीप जाकर बोला कि 'तुम अपने मनमें कुछ दुःख न करो / मैं सतत तुम्हारे सब मनोरथों को पूरा करूँगा।' यह बात सुनकर कनकश्री मूछित हो गई तथा शीतोपचार के अनन्तर पुनः सचेतन हुई / इसके बाद कहने लगी कि यदि अब फिर से तुम ऐसा बोलोगे तो मैं प्राणत्याग कर दूंगी। इस जन्म में मेरा यही वैद्यराज ही स्वामी हो सकता है अथवा अग्नि ही शरण है / यदि तुम बलात्कार करोगे तो समझो कि तुम्हारा अमंगल हो गया। अन्यथा इन वाहनों का सब धन तुम्हारा होगा। भीम अपने मन में सोचने लगा कि नगर में जब यह मेरे अच्छे अच्छे घरों को देखेगी तब मेरी सब बातें मान जायगी / यह विचार कर पुनः बोला कि 'जो तुम बोलोगी वही होगा। इसके बाद जहाज क्रमशः अवन्ती के समीप आ पहुँचा तथा सब वस्तुयें उतारी गई / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org