________________ 346 विक्रम चरित्र वल्ली के रस के साथ मीला कर बहुत सी गुटिकायें बनाई और उन को अपने पास रख लिया। फिर जब राजकुमार ने भारण्ड पक्षी के पास जाकर उसे प्रणाम किया तो उसे देखकर भारण्ड पक्षीने पूछा कि 'आज मैं तुम्हारा नवीन ही वेष देख रहा हूँ। यह तुम ने कैसे किया सो कहो।' ___ राजकुमार ने उत्तर दिया कि यह सब आपकी प्रसन्नता से ही हुआ है। आप के अनुग्रह से आज मैं अत्यन्त खुश हूँ। यदि आप की आज्ञा हो तो मैं कनकपुर नगर में जाकर राजा की कन्या को सुन्दर नेत्रवाली बनाऊँ / ' तब भारण्ड पक्षीने कहा कि 'यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा हो तो अच्छा जाओ, लेकिन आज यहाँ ठहर जाओ। मेरे लड़के प्रातःकाल सर्वत्र जाते हैं / मैं रात्रि में कहूँगा सो तुम मेरे एक पुत्र के पंख पर बैठ. कर कनकपुर चले जाना। विद्वान् व्यक्ति शास्त्र को बोध के लिये, धन को दान के लिये, प्राण को धर्म के लिये और शरीर को परोपकार के लिये ही धारण करते हैं। मरु देश के मार्ग में रहने वाला बबूल का वृझ भी अच्छा है, जो पथिकसमूह का उपकार करता है। उपकार करने में असमर्थ कनकाचल पर रहने वाले कल्पद्रुमों से क्या लाभ ? जो किसी पथिक के काम नहीं आते। वास्तव में जो परोपकार करता है वह व्यक्ति स्वर्ग को प्राप्त करनेवाला होता है। दूसरे दिन प्रातःकाल में राजकुमार उस भारण्ड से बिदा लेने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org