Book Title: Maharaj Vikram
Author(s): Shubhshil Gani, Niranjanvijay
Publisher: Nemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala

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Page 446
________________ विक्रम चरित्र अत्यन्त रमणीय बनादो। प्रातःकाल में ही सब शत्रु आदर पूर्वक मेरी सेवा करने के लिये यहाँ आने वाले हैं। उसने उन लोगों को देने के लिये अपने सेवकों को भेजकर पान तथा वस्त्र आदि शहर में से मंगवाये। फिर वह वैद्यराज विक्रमचरित्र चित्रशाला में जाकर सब सामन्तों की सेवा लेने के लिए अपने स्थान पर बैठा। वैद्यराज के सब समाचार जानकर राजा कनकसेन के दूतों ने प्रातःकाल उसे यह सब वृत्तांत कहा। उन समाचारों को जानकर राजा ने अपने मंत्री आदि से कहा कि'इस वैद्य के पास न सेवक हैं, न घोडे हैं तथा न हाथी ही हैं, पर वह सब सामन्तो से सेवालेने की तैयारी कर रहा है, यह सब मूवी का लक्षण है।' राजाने अपनी पुत्री से पुछवाया कि उसका पति उन्मत्त तो नहीं हो गया है ? ' राजाकी पुत्री ने उत्तर भेजा कि 'मेरा पति जो कुछ करता है, वह सब सोच समझ कर करता है / आप चिंता न करें / ' - उधर कनकसेन राजा के दूतों ने खबर दी कि 'सब शत्रु सामन्त अपनी अपनी सेना सहित आये हैं। एसा लगता था मानो वे आक्रमण करने वाले हैं। फिर वे सामन्त लोग उपहार ले ले कर उद्यान में वैद्यराजको प्रणाम करने गये / एकाएक सबने रत्न, सुवर्ण, तुरंग आदि का उपहार देकर अत्यन्त भक्तिपूर्वक वैद्य विक्रमचरित्र को प्रणाम किया। कोई अञ्जलिबद्ध होकर वैद्यराज के आगे खड़े है, तो कोई हर्षपूर्वक पंखा चला रहे हैं, तो कोई दोनों चरणों को दबा रहे हैं, और कोई जय जय शब्द कर रहे हैं। विक्रमचरित्र ने भी सब को उनके योग्य वस्त्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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