________________ विक्रम चरित्र तब भारण्ड ने अपने पुत्रों से कहा कि 'इस अतिथि को यहाँ वृक्ष पर ले आओं / पिता के कहने पर पुत्र उठा और शीघ्र ही अतिथि को पिता के समीप ले आया। अतिथि के अपने पास आजाने पर भारण्ड पक्षीने उस को कुछ फल दिये। जिससे वह सन्तुष्ट होगया। इसके बाद उस राजकुमार को पक्षियों ने वृक्ष के नीचे रख दिया। इस प्रकार हमेशा फलों का आहार करते हुए वह राजकुमार सुख पूर्वक वहाँ रहने लगा। ___ कुछ दिनों के बाद एकदा अपने एक पुत्र को संध्या बित जाने पर देर से आया हुआ देख कर उसे पूछा कि 'तुम आज इतनी देर से क्यों आये ?' कनकसेन की अंधी पुत्री का समाचार तब वह कहने लगाः-" हे तात ! मैं एक वन से दूसरे वन में क्रीडा करता हुआ 'कनकपुर' नामक एक सुन्दर नगर में गया था। वहाँ कनकसेन नामक राजा की रति नामकी स्त्री है। उसकी कन्या कनकश्री अपने कर्मदोष से अन्धी हो गई थी / वह क्रमशः युवावस्था को प्राप्त हुई। बहुत रूपवती होने पर भी अन्धी होने से वह कन्या आज काष्ठभक्षण करने जारही थी। आज तक राजाने कई तरह के इलाज कराये फिर भी उसका अंधापन नहीं मिटा। किसी तरह उस के पिताने उसे समझा-बुझाकर दस दिन के लिये घर में रखी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org