________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित जिनेश्वर देव की पूजा करके आया और भोजन करने के लिये बैठा उस समय उसका पुत्र विक्रमचरित्र भी बहारसे वहाँ आया। तब राजा कहने लगा कि 'आज तुम मेरे साथ ही भोजन करने के लिये बैठ जाओ।' इस प्रकार पिता के कहने पर विक्रमचरित्र उनके साथ ही भोजन करने के लिये बैठ गया / भोजन करते करते राजाने अन्य बातों के साथ साथ कहा कि 'हे पुत्र ! जब तक मैं जीवित हूँ तब तक तुम मेरी आज्ञा से धर्म कार्य में तथा शरीर सुखाकारी आदि में प्रति दिन पाँच सौ दीनार का अपनी इच्छानुसार व्यय करो / / राजा की यह बात सुन कर विक्रमचरित्र अपने मनमें सोचने लगा कि पिता के वचनों से मालूम पड़ रहा हैं कि मैं जो खर्च कर रहा हूँ वह इनको पसन्द नहीं। क्यों कि सोलह वर्ष का जो पुत्र अपने पिता की लक्ष्मी का उपयोग करता है वह पूर्वजन्म की लेनदारी से ही प्राप्त हुआ है. ऐसे समझना चाहिये / ' कहा भी है: "उत्तम पुरुष अपने गुणों से प्रसिद्ध होते हैं। पिता के गुणों से प्रसिद्ध होने वाले मध्यम होते हैं / मामा के सहारे प्रसिद्धि पानेवाले व्यक्ति अधम गिने जाते है और श्वसुर के नामसे प्रसिद्धि पानेवाले व्यक्ति अत्यन्त ही अधम गिने जाते हैं / "x राजकुमार की विदेश गमन की इच्छा इतना सुनते ही उसे वह अन्न भी विष तुल्य हो 4 उत्तमाः स्वगुणैः ख्याता मध्यमास्तु पितुर्गुणैः। अधमाः मातुलैः ख्याताः श्वसुरैश्चाधमाधमाः // 84 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org