________________ 302 विक्रम चरित्र राजपुत्री का सब का वत्तान्त सुनना तब दूसरा पथिक कहने लगा मैं तुम्हारे आगे अपना दुःख नहीं कह सकता। लोक में कोई किसी के दुःख को मिटा नहीं सकता। क्यों कि लोग अपने पूर्व कृत कर्मों का ही फल भोगा करते हैं। कहा भी है-- ____"किसी भी प्राणी के सुख अथवा दुःख का करने वाला या हरने वाला कोई अन्य नहीं है। यही सद्बुद्धि से विचारना चाहिये। पूर्व जन्म में किये हुए अपने अच्छे या बुरे कर्मों के प्रभाव से ही लोगों को सम्पत्ति या विपत्ति प्राप्त होती है / इसके लिये दूसरे पर क्रोध करने अथवा प्रसन्न होने से क्या लाभ ?+ . उसकी यह बात सुन कर दूसरे पुरुष ने कहा कि 'यह तो सत्य है तथापि तुम अपने दुःख का मेरे आगे प्रकाशित करो / क्यों कि दूसरे के आगे अपने दुःख का वर्णन करने से भी मनुष्य कुछ शान्ति को प्राप्त कर सकता है। तब वह पहला पुरुष बोला ' मैं अवन्तीपुर के महाराजा का पुत्र हूँ।' उस भारण्ड पक्षीने विक्रमचरित्र का कहा हुआ वल्लभीपुर में जाने तक का और कन्या एवं घोड़े के अपहरण तक का सब वृत्तान्त कह सुनाया। (जिसे पाठक जानते हैं) तब दूसरा पुरुष उसे कहने + सुखदुखानां कर्ता हर्ता च न कोऽपि कस्यचिजन्तोः। इति चिन्तय सद्बुद्धया पुरा कृतं भुज्यते कर्म // 417 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org