________________ WW मुनि निरंजनविजयसंयोजित 307 सदा ही आदरणीय होना चाहिये / कहा भी है कि - ___ “माता और पिता से अच्छे उत्सव के साथ जिस पुरुष के लिये कन्या दी जाती है, वह पुरुष सुन्दर हो या कुरूप हो कन्या उस वर को ही हर्ष पूर्वक स्वीकार करती है।'x अपनी कन्या की बात सुन कर राजा पुनः अपने स्थान पर आया और आनन्द कुमार से बोला कि 'तुम कन्या को शीघ्र ही निरोग करो / तुमने जो मांग की है, वह सब मैं अवश्य पूरी कर दूंगा।' राजपुत्री को नेत्र प्राप्ति राजा के इस प्रकार कहने पर आनन्दकुमार गजेन्द्र कुण्ड से जल आदि लाकर शुभ दिन में मन्त्र-तन्त्र आदि की साधना का आडंबर करने लगा और उस औषधि को घिस कर उस कन्या के दोनों नेत्रों में लगा दी। इस से राजकन्या को आखें ठीक हो गई। मानो दिन में ही तारा दिखाई देते हों!। पुत्री की आखें ठीक हो जाने से राजा ने प्रसन्न होकर नगर में तोरण-पताका आदि लगवा कर स्थान स्थान पर नृत्य महोत्सव करवाया। कन्या, पुत्र, मित्र आदि का सुन्दर सुख देख कर माता-पिता आदि अपने मन में हर्ष का अनुभव करते हैं। उत्सव खतम होने के बाद राजा ने आनन्दकुमार से पूछा कि 'तुम किसे यह कन्या xकन्या विश्राणिता पित्रा यस्मै पुंसे वरोत्सवम् / तमेव कन्यका चारुमचारं वृणुते वरम् // 455 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org