________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 323 मेरी प्रिया के समीप आकर उस के साथ क्रीडा करता है। वह मुझ से भी अधिक बलवान् है अतः मैं उसे नहीं रोक सकता।' . उस किसान की बात सुन कर विक्रमादित्य ने कहा कि 'मैं भी तुम्हारे घर पर चलता हूँ तथा रात्रि में हम दोनों मिलकर उस के बल का गुप्त रूप से पता लगायेंगे। इस प्रकार विचार कर के राजा विक्रमादित्य उस के साथ उस किसान के घर पर आये और जार के स्वरूप को जानने के लिये दोनों कौतुक वश एकान्त में चुप चाप बैठ गये। रात्रि में जब वह जार आकर उस किसान की पत्नी के साथ वार्ता करने लगा तब किसान सथा राजा विक्रम दोनों उसे अत्यन्त तीक्ष्ण बाणों से मारने लगे। बाण लगने पर वह जार कहने लगा कि ' मेरे शरीर में आज कुछ मच्छर काट रहे हैं ? उस जार की यह बात सुन कर विक्रमादित्य अत्यन्त आश्चर्य चकित हो गया और सोचने लगा कि बाणों के घात को भी जब यह मच्छरों के दंश के समान मानता है तो फिर यह कितना बलवान् व्यक्ति होगा। कुछ डरता हुआ विक्रमादित्य और हली घर से बहार निकले, उसके पीछे पीछे जार पुरुष और हली की स्त्री वे दोनों भी चले। राजा विक्रमादित्य ने कुछ खाते हुए हली को अकस्मात् रोका, उससे कोधायमान होकर हलीने विक्रमादित्य और अपनी स्त्री उन दोनोंकों अपने गाल के अन्दर रखे, बाद पूर्ववत् खाने लगा, जारपुरुष अपने.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org