________________ / 328 . विक्रम चरित्र भील को मार दिया है। राजा उसके मृत्युपर विचार करने लगा, ठीक ही कहा है कि 'वेश्या, राजा, चोर, जल, मार्जार, दांतवाले हिंसक प्राणी, अग्नि, मांस खाने चाले ये सब कहीं भी विश्वास के योग्य नहीं होते।' अपने स्वामी को मरा हुआ देखकर वह स्त्री भी मूर्छित होकर गिर गई और उसके प्राण पखेरु भी उड गये। अत्यन्त मोह के कारण सदा संसारी जीवों की यही दशा होती है। , भील और भीलडी की मृत्यु देखकर राजा अत्यन्त दुःखी हुआ / वह सोचने लगा कि 'इस भयंकर वन में मेरे पर निष्कारण परोपकार करने वाला यह युगल अकस्मात् ही मृत्युवश हो गया / अरे ! यह मेरे परम उपकारी थे। इन दोनों ने मुझको जीवनदान दिया, उनकी यह दशा!! शुभ कार्य करनेवाले की विधाता ने ऐसी बुरी दशा करदी। विधि की गति विचित्र ही होती है।' राजा ने दान बंद कीया राजा को ढूंढते हुए उसकी एक टुकडी वहाँ आ पहुँचीं / राजा उसके साथ अपने नगर में लोट गया। उपरोक्त विचार के कारण राजाने दुःखी होकर हमेशा दिया जाने वाला दान भी बन्द कर दिया। दान बन्द होने से दूर दूरके याचक गण दान पाये बिना निराश होने लगे / सदा परोपकारी दानधर्म में अनुरक्त ऐसे महाराजा विक्रमादित्य के दान बंद कर देने से याचक जनों में हाहाकार मच गया / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org