________________ विक्रम चरित्र एकचित्त करके आनन्दकुमार तत्काल राजा के समीप जाकर मधुर स्वर से बोला कि 'हे राजन् ! अब अपना वचन पूर्ण करो जो धर्म संयुक्त वाणी बोलते हैं वे पहले ही निश्चयपूर्वक बोलते है गर्व रहित तुच्छता रहित, किसी भी कार्य का विरोध नहीं करने वाला मित अक्षर युक्त कुशलता से परिपूर्ण तथा मधुर बोलते हैं।' राजाने खुशीसे आनन्दकुमार के कहने से धर्मध्वज को अपनी पुत्री देदी और अच्छे कुल में उत्पन्न एक कन्याको आठ गावों सहित सिंह नामक किसान को दीला दी।' राजा ने हर्षपूर्वक अपना वचन पूर्ण किया। क्यों कि उत्तम प्रकृति के मनुष्यों का यही व्रत होता है कि राज्य चला जाय, लक्ष्मी चली जाय, ये विनश्वर प्राण चले जाय, परन्तु अपने कथित वचन नहीं जा सकते / सज्जन व्यक्ति जिस अक्षर को अपने मुख से निकाल देते हैं वह अक्षर पत्थर की रेखा के समान कभी नहीं मिटते / आनन्दकुमार की यह असाधारण बात देख कर नगर लोग कहने. द लगे कि इस मनुष्य में कितनी VIII Nilin निष्कपट परोपकारिता है ? सज्जन व्यक्ति अपने कार्य को छोड़कर परोपकार में ही लगे रहते हैं / चन्द्रमा पृथ्वी को प्रकाशित करता है, परन्तु अपने कलंक को नहीं देखता LOPEDOM विरल व्यक्ति ही गुण के जान RECOME ने वाले होते हैं। कोई कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org