________________ 130 विक्रम चरित्र उसको अच्छे स्थान में निवास, सब गुणों से युक्त सुन्दर स्त्री, पवित्र तथा विद्वान पुत्र, सज्जन पुरुषों में अनुराग, न्याय मार्ग से धन की प्राप्ति तथा आत्म कल्याण साधक चित्त की प्राप्ति होती हैं / इस प्रकार वह परिवार के साथ सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन गुणसार के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि विदेश जाकर द्रव्य का उपार्जन करना चाहिये। इसलिये वह अपने पिला से जाकर बोला कि-'हे पिताजी ! मैं व्यापार करने की इच्छा से कुछ वस्तुयें लेकर किसी दूर देश में जाना चाहता हूँ।' _ गुणसार के मुख से ऐसी बात सुनकर उसके पिता ने कहा-- ' हे पुत्र ! तुम्हारी दूर देश जाने की इच्छा व्यर्थ ही है। क्योंकि अपने घर में धन का कुछ कमीना नहि है। इस से जो तुम्हारी इच्छा हो सो करो। देशान्तर जाने में बहुत कष्ट होता है / जिस मनुष्य में कष्ट सहन करने की शक्ति अधिक है, वही देशान्तर में निर्वाह कर सकता है। तुम अत्यन्त सुकुमार हो इसलिये अधिक कष्ट नहीं .सह सकते हो, अतः देशान्तर जाने का व्यर्थ आग्रह मत करो। जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, जो साहसी है, किसी भी अवस्था में घबराये नहीं और बोलने में भी जो चतुर हो, जिसका शरीर सुदृढ़ हो, जो कष्ट सहन कर सके, उसी को विदेश जाना चाहिये / यह सब विचार करके तुम इस अपने आग्रह को छोड़ दो। अपने घर में ही सुखपूर्वक रहते हुए उसे अलंकृत करो। क्यों कि मेरे नेत्र को आनन्द देने वाले तुम ही एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org