________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित कृषक सिंह के साथ गमन ____राजकुमारी की बात सुनकर उस किसान ने विचार किया कि 'उस पुरुष ने यहाँ यह कन्या से संकेत कर रखा होगा, इस में कोई संदेह नहीं / अनः मौन धारण कर के उसी समय उस राजकन्या को लेकर वह सह नाम का किसान अपने गांव के ओर जाने लगा / ' बहुत दूर जाने के बाद मार्ग में राजपुत्री अत्यन्त प्रसन्न होकर बोली कि 'अब आगे कितना मार्ग बाकी रहा है, वह कहो / पूर्व में अपनी कोई कथा कहकर इस समय राह चलते हुए मेरे कानों को पवित्र कगे।' इस प्रकार पुनः पुनः कहने पर भी जब वह किसान नहीं बोला, तो वह राजकुमारी अपने मन में सोचने लगी कि लज्जा के कारण यह मुझ से अभी नहीं बोलते है / क्योंकि उत्तम प्रकृति के मनुष्य होते हैं वे निरर्थक बोला नहीं करते / जब कोई काम होता है तो भी अल्प ही बोलते हैं / क्यों कि-- "युवावग्या में जो अत्यन्त शान्त चित्त रहते हैं, जो याचना करने पर भी प्रसन्न होते हैं और प्रशंसा करने पर जो लज्जित हो जाते हैं, वे महान् व्यक्ति इस संसार में सब से श्रेष्ठ माने जाते हैं / x शारद ऋतु में मेघ गर्जना तो करते हैं परन्तु वर्षा नहीं करते। वेही भव वर्षा ऋतु में गरजे बिना ही वर्षा करते हैं / इसी प्रकार नीच व्यक्ति बोलते हैं बहुत परन्तु करते कुछ भी नहीं / सज्जन पुरुष बोलते x यौवनेऽपि प्रशान्ता ये ये च हृष्यन्ति याचिताः। वर्णिता ये व लजन्ते ते नरा जगदुत्तमाः // 342 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org