________________ 292 विक्रम चरित्र राजकुमारी का महल से निकलना राजपुत्री शुभमती ने उत्तर दिया कि देहचिन्ता होने पर कोई भी मनुष्य विलम्ब सहन नहीं कर सकता।' इस प्रकार युक्ति से अपनी सखी को समझा कर राजपुत्री शुभमती शीघ्र महल से बाहर निकली। उधर विक्रमचरित्र राजपुत्री के आने में बहुत देरी होने से अत्यन्त व्याकुल चित्त से इधर उधर देखने लगा / इतने में कोई एक किसान वहाँ आया। उसे देख कर विक्रमचरित्र बोला कि 'मैं वरराजा धर्मध्वज को देख कर वापस आता हूँ, तब तक तुम ये सब अश्व-वस्त्र आदि लेकर यहाँ खडे रहो।' जब उस पुरुष ने स्वीकार कर लिया तब विक्रमचरित्र ने अपना वेष बदल कर कन्या को खोजने के लिये शीघ्र ही राजा के महल में प्रवेश किया। कहा है कि 'उलूक पक्षी दिन में नहीं देखता, काक रात्रि में नहीं देखता, परन्तु कामान्ध तो एक अपूर्व अन्ध है, जो दिन तथा रात्रि किसी भी समय नहीं देख सकता। कामान्ध व्यक्ति धत्तूरा खाये हुए मनुष्य के समान कर्त्तव्य या अकर्तव्य, हित या अहित कुछ भी नहीं समझता है। ___ जब राजकुमारी शुभमती वहां आई, तो उस पुरुष को राजकुमार समझ कर कहने लगी कि 'अब तुम मुझ से विवाह करने के लिये अपने स्थान पर ले चलो। उस समय संध्या हो चुकी थी, पृथ्वी पर चारों बाजु अन्धेरा छा गया था / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org