________________ मुनि निरंजनविनयसंयोजित 295 __“एक स्त्री, तीन बालक, दो हल, दश गायें, नगर के समीप रहे हुए गाँव में निवास यह सब स्वर्य से भी बढ़कर होता है।* नवीन सर्षप का शाक, नवीन तण्डुल का भात, पिच्छल मन्थन किया हुआ दही इत्यादि चीजों से ग्रामीण मनुष्य थोड़े ही खर्च से बहुत मिष्ट वस्तु खाते हैं। उस किसान की इस प्रकार की बातें सुनकर वह राजकुमारी अपने मन में विचार करने लगी कि 'मैं बहुत बड़े संकट में पड़ गई हूँ, इसलिये बुद्धि बल बिना इस संकट से किसी भी प्रकार नहीं निकल सकती / जिसके पास बुद्धि है उस के पास बल भी है ही। बुद्धि रहित व्यक्ति को बल होने पर भी कोई कार्य उससे सिद्ध नहीं हो सकता / बुद्धि से ही जंगल में 'खरगोश ' ने 'सिंह' को मार डाला था। इस प्रकार अपने मन में विचार कर वह राजकुमारी बोली कि 'तुम बहुत अच्छा बोलते हो परन्तु एक बहुत बड़ा विघ्न तुम को दुःख देने वाला है / यदि तुम मुझ से विवाह किये बिना मुझ को अपने घर ले जाओगे तो वहाँ का राजा मेरे रूप की शोभा से मोहित होकर शीघ्र ही तुम को मार डालेगा और मुझको अपने घर ले जायेगा / इसलिये तुम मुझ को अपने खेत में ही रख कर अपने घर जाओ और शीघ ही विवाह की सामग्री लाकर खेत में ही मुझ से विवाह कर के फिर बाद में अपने घर ले जाना / ऐसा करने * एका भार्या त्रयः पुत्राः, द्वे हले दश धेनवः / ग्रामे वासः पुरासन्ने स्वर्गादपि विशिष्यते // 354 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org