________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित मंत्रियों आदिसे राजा का विचार विमर्श इस के बाद राजसभा में आकर सिंहासन पर बैठे। भट्टमात्र आदि मंत्रियों को बुलाकर रात्रि का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। राजाने मंत्रियों के प्रति कहा कि 'इस प्रकार के दुर्गस्थान में वस्त्राभूषणों की चोरी करने के लिये कोई चोर नहीं आया है, परन्तु वह इस आचरण से बतला रहा है कि मैं विद्याधरों में श्रेष्ठ अदृश्य करण के प्रौढ मंत्र से अदृश्य शरीरवाला तथा विद्याओं को सिद्ध करने वाला, सात्त्विकाग्रणी कोई मनुष्य हूँ। ऐसा मुझको ज्ञात होता है तथा ऐसा भी मुझको ज्ञात होता है कि मानो वह कह रहा है कि आपके राज्य में जो कई विद्वान् अथवा सिद्ध हो वह मुझको प्रगट करे / मैं अभी तो वस्त्राभूषणों से भरी हुई पेटी ही लेकर जाता हूँ, परन्तु प्रातःकाल फिर विघ्न करूँगा। इस से मुझको ज्ञात होता है कि वह सात्त्विकों में श्रेष्ठ मुझको राज्य से हटाकर हमारी सब सम्पत्ति शीघ्र ही ले लेगा। दुःसाध्य खप्पर चोरका मैंने निग्रह किया। परन्तु मेरे महल में प्रवेश करने वाला यह दुष्ट भी उसके समान ही पराक्रमी है। यह भी रात्रि में धनिकों के घर में प्रवेश करके खप्पर के समान ही सब की सम्पत्ति का हरण करेगा / इस में कोई संशय नहीं है।' ___एसा कह कर राजा विक्रमादित्य ने स्वर्णथाल में पान का बीड़ सभा में घूमाया / जो कोई इस चोर को पकड़ कर लावे, वह इस पान का बीड़ा उठा ले / चोर के पकडा जाने पर बहुत धन देकर मैं उस का सत्कार करूँगा। राजा के इस प्रकार कहने पर लोगों ने अपने मन में विचार किया कि वह चोर बहुत बलवान् है जो राजा के विषम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org