________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित ____ मंत्री की यह बात सुनकर सिंह नामक कोटवाल राजा के समक्ष आया और पान का बीडा उठाकर बोला कि ' मैं तीन दिन में उस चोर को किसी प्रकार अपने स्वामी के आगे अवश्य लाउँगा, वरना आप मुझको चोर का दण्ड दें।' यह प्रतिज्ञा कर के वह कोटवाल वहाँ से चला / द्विपथ, त्रिपथ तथा चतुष्पथादि स्थानों में चोर को पकड़ने के लिये अच्छे अच्छे सिपाहियों को नियुक्त किया और स्वयं तलवार लेकर वह कोटवाल गलियों में घूमता हुआ तीसरे दिन के अन्त में पूर्व द्वार पर पहुँचा / उधर कालि वेश्या देवकुमार को नगर का हाल पूछने पर कहने लगी कि-' चोर को पकड़ने के लिये सिंह कोटवाल ने प्रतिज्ञा की है / यदि वह घूमता-फिरता कहीं यहाँ आगया, तो तेरी और मेरी क्या दशा होगी ? तुमने सर्वप्रथम राजा के महल में ही चोरी की, यह तुमने अच्छा नहीं किया / क्यों कि राजा किसी प्रकार भी वश में नहीं आसकता / शरीर का रोगरूप शल्य, अग्नि तथा विष इन सब वस्तु ओं का प्रतिकार करना सरल है, परन्तु विना विचारे कार्य करने से जो पश्चाताप होता है, उसका कुछ भी औषध या प्रतिकार नहीं है / इसलिये अब चिन्ता करने से कोई लाभ नहीं। तुम अभी यहाँ से किसी दूसरे स्थान में चुप चाप एकान्त में चले जाओ। जब उस कोटवाल की प्रतिज्ञा का समय पूरा हो जाय तब फिर तुम यहाँ चले आना / ऐसा करने से तुम्हारा तथा मेरा कल्याण होगा / मेरा हृदय तो अब भय से ध्वजा के वस्त्र के समान कम्पित हो रहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org