________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 261 " वृद्धा ने उत्तर दिया कि यदि युवती स्त्री काष्ठ भक्षण करे तो इन्द्र अति प्रसन्न हो कर इस से भी आठ गुनी अधिक सम्पत्ति देकर उसका सम्मान करेगा। . ... .. ___वृद्धा की बात सुन कर वह वधू बोली कि 'यदि ऐसी बात है तो मैं भी काष्ठ भक्षण करूँगी !' वह वधू इस प्रकार विचार कर काष्ठ भक्षण करने के लिये तैयार हुई / वृद्धा ने रात्रि में नदी तट पर ही स्वयं उसके साथ जाकर अग्नि तथा काष्ठ ला दिये और वह पुत्रवधू चिता में प्रवेश करके भस्म हो गई। __ दूसरे दिन प्रातःकाल अपनी स्त्री को आती हुई न देख वीर श्रेष्ठी ने अपनी माता से पूछा कि 'वह अब तक क्यों नहीं आई ?' तब उस वृद्धा ने उत्तर दिया कि 'हे पुत्र ! जो मर जाता है, वह फिर कभी भी लौट कर नहीं आता / ' .. तब माता ने अपनी सब सत्य हकीकत कही और पुत्र के प्रति बोली कि 'तुम शोक मत करो। मृत व्यक्ति फिर नहीं आती। ऋतु बीत जाने पर फिर आती है, चन्द्रमा क्षय को प्राप्त होकर पुनः वृद्धिशाली होता है, परन्तु नदी का बहता हुआ जल पुनः लौटकर नहीं आता। ठीक उसी प्रकार जब अनुष्य का प्राण एक बारे शरीर से निकल जाता है, तो पुनः लौट कर नहीं आता।' इस प्रकार अपने पुत्र को समझा कर वृद्धा जो धन लाई थी, उससे पुत्र की दूसरी शादी करा कर सदा के लिये सुखी हो गई। अतः कहा है कि जो दूसरे का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org